मिट्टी व गोबर के गणेशजी की मूर्ति के विसर्जन का ही विधान है: पं. देव शर्मा

स्वास्तिक न्यूज़ पोर्टल @ रमाकांत उपाध्याय /

{ ऋषिकेश के विद्वान पंडित देव शर्मा से जानिए मिट्टी व गोबर के गणेशजी की मूर्ति के विसर्जन का ही विधान..?} 
यह यथार्थ है कि जितने लोग भी गणेश विसर्जन करते हैं उन्हें यह बिल्कुल पता नहीं होगा कि यह गणेश विसर्जन क्यों किया जाता है और इसका क्या लाभ है ??

हमारे देश में हिंदुओं की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि देखा देखी में एक परंपरा चल पड़ती है जिसके पीछे का मर्म कोई नहीं जानता लेकिन भयवश वह चलती रहती है।

आज जिस तरह गणेश जी की प्रतिमा के साथ दुराचार होता है, उसको देख कर अपने हिन्दू मतावलंबियों पर बहुत ही ज्यादा तरस आता है और दुःख भी होता है।

शास्त्रों में एकमात्र गौ के गोबर से बने हुए गणेश जी या मिट्टी से बने हुए गणेश जी की मूर्ति के विसर्जन का ही विधान है।

गोबर से गणेश एकमात्र प्रतीकात्मक है माता पार्वती द्वारा अपने शरीर के उबटन से गणेश जी को उत्पन्न करने का चूंकि गाय का गोबर हमारे शास्त्रों में पवित्र माना गया है इसीलिए गणेश जी का आह्वाहन गोबर की प्रतिमा बनाकर ही किया जाता है।

इसीलिए एक शब्द प्रचलन में चल पड़ा :-
“गोबर गणेश”

इसिलिए पूजा, यज्ञ, हवन इत्यादि करते समय गोबर के गणेश का ही विधान है । जिसको बाद में नदी या पवित्र सरोवर या जलाशय में प्रवाहित करने का विधान बनाया गया।

गणेश जी के विसर्जन का क्या कारण है ?
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भगवान वेदव्यास ने जब शास्त्रों की रचना प्रारम्भ की तो भगवान ने प्रेरणा कर प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेश जी को वेदव्यास जी की सहायता के लिए गणेश चतुर्थी के दिन भेजा।

वेदव्यास जी ने गणेश जी का आदर सत्कार किया और उन्हें एक आसन पर स्थापित एवं विराजमान किया।
(जैसा कि आज लोग गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की प्रतिमा को अपने घर लाते है)

वेदव्यास जी ने इसी दिन महाभारत की रचना प्रारम्भ की या “श्री गणेश” किया ।
वेदव्यास जी बोलते जाते थे और गणेश जी उसको लिपिबद्ध करते जाते थे। लगातार दस दिन तक लिखने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन इसका उपसंहार हुआ।

भगवान की लीलाओं और गीता के रस पान करते करते गणेश जी को अष्टसात्विक भाव का आवेग हो चला था जिससे उनका पूरा शरीर गर्म हो गया था और गणेश जी अपनी स्थिति में नहीं थे ।

गणेश जी के शरीर की ऊष्मा का निष्कीलन या उनके शरीर की गर्मी को शांत करने के लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर गीली मिट्टी का लेप किया। इसके बाद उन्होंने गणेश जी को जलाशय में स्नान करवाया , जिसे विसर्जन का नाम दिया गया।

बाल गंगाधर तिलक जी ने अच्छे उद्देश्य से यह शुरू करवाया पर उन्हें यह नहीं पता था कि इसका भविष्य बिगड़ जाएगा।

गणेश जी को घर में लाने तक तो बहुत अच्छा है परंतु विसर्जन के दिन उनकी प्रतिमा के साथ जो दुर्गति होती है वह असहनीय बन जाती है।

आजकल गणेश जी की प्रतिमा गोबर की न बना कर लोग अपने रुतबे, पैसे, दिखावे और अखबार में नाम छापने से बनाते हैं।

जिसके जितने बड़े गणेश जी उसकी उतनी बड़ी ख्याति उसके पंडाल में उतने ही बड़े लोग और चढ़ावे का तांता।

इसके बाद यश और नाम अखबारों में अलग। सबसे ज्यादा दुःख तब होता है जब customer attract करने के लिए लोग DJ पर फिल्मी अश्लील गाने और नचनियाँ को नचवाते हैं ।

आप विचार करके हृदय पर हाथ रखकर बतायें कि क्या यही उद्देश्य है गणेश चतुर्थी या अनंत चतुर्दशी का ?? क्या गणेश जी का यह सम्मान है ??
इसके बाद विसर्जन के दिन बड़े ही अभद्र तरीके से प्रतिमा की दुर्गति की जाती है।

वेदव्यास जी का तो एक कारण था विसर्जन करने का लेकिन हम लोग क्यों करते हैं यह बुद्धि से परे है । क्या हम भी वेदव्यास जी के समकक्ष हो गए ? क्या हमने भी गणेश जी से कुछ लिखवाया ?
क्या हम गणेश जी के अष्टसात्विक भाव को शांत करने की हैसियत रखते हैं ?

गोबर गणेश मात्र अंगुष्ठ के बराबर बनाया जाता है और होना चाहिए , इससे बड़ी प्रतिमा या अन्य पदार्थ से बनी प्रतिमा के विसर्जन का शास्त्रों में निषेध है।

और एक बात और गणेश जी का विसर्जन बिल्कुल शास्त्रीय नहीं है। यह मात्र अपने स्वांत सुखाय के लिए बिना इसके पीछे का मर्म अर्थ और अभिप्राय समझे लोगों ने बना दिया।

एकमात्र हवन, यज्ञ, अग्निहोत्र के समय बनने वाले गोबर गणेश का ही विसर्जन शास्त्रीय विधान के अंतर्गत आता है ।

प्लास्टर ऑफ paris से बने, चॉकलेट से बने, chemical paint से बने गणेश प्रतिमा का विसर्जन एकमात्र अपने भविष्य और उन्नति के विसर्जन का मार्ग है।

इससे केवल प्रकृति के वातावरण, जलाशय, जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र, भूमि, हवा, मृदा इत्यादि को नुकसान पहुँचता है।

इस गणेश विसर्जन से किसी को एक अंश भी लाभ नहीं होने वाला। हाँ बाजारीकरण, सेल्फी पुरुष, सेल्फी स्त्रियों को अवश्य लाभ मिलता है लेकिन इससे आत्मिक उन्नति कभी नहीं मिलेगी ।

इसीलिए गणेश विसर्जन को रोकना ही एकमात्र शास्त्र अनुरूप है।

चलिए माना कि आप अज्ञानतावश डर रहे हैं कि इतनी प्रख्यात परंपरा हम कैसे तोड़ दें तो करिए विसर्जन। लेकिन गोबर के गणेश को बनाकर विसर्जन करिए और उनकी प्रतिमा 1 अंगुष्ठ से बड़ी नहीं होनी चाहिए।

मुझे पता है मेरे इस पोस्ट से कुछ कट्टर झट्टर बनने वालों को ठेस लगेगी और वह मुझे हिन्दू विरोधी घोषित कर देंगे।

पर मैं अपना कर्तव्य निभाऊँगा और सही बातों को आपके सामने रखता रहूँगा ।
बाकी का – सोई करहुँ जो तोहीं सुहाई ।

स्पष्टिकरण- यह पोस्ट जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से साझा की गयी है। सहमत होना या ना होना आपका फ़ैसला है। बात सिर्फ़ इतनी है हमें उन मान्यताओं को अपनाना होगा जिससे सनातन संस्कृति की सही छवि दुनिया भर में फैले।

 

गणेश विसर्जन के शुभ मंत्र
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गणेश विसर्जन के दौरान मंत्रों का जाप विशेष माना जाता है, माना जाता है कि यदि इन मंत्रों का जाप करते हुए बप्पा को विदा करने से वे कई आशीर्वाद प्रदान करते हैं। वहीं ये मंत्र मुख्यरूप से दो प्रकार के हैं।

1. श्री गणेश विसर्जन मंत्र
यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च॥

2. श्री गणेश विसर्जन मंत्र
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर।
मम पूजा गृहीत्मेवां पुनरागमनाय च॥

ऐसे करें विसर्जन
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श्री गणेश विसर्जन से पूर्व स्थापित श्री गणेश प्रतिमा का संकल्प मंत्र के बाद षोड़शोपचार पूजन-आरती करना चाहिए। गणेश जी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। मंत्र बोलते हुए 21 दूर्वा-दल चढ़ाएं। 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और 5 ब्राह्मण को प्रदान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें।

इसके बाद गणेशजी की प्रतिमा को प्रणाम करके फिर आज्ञा लेकर श्रद्धापूर्वक उन्हें उठाएं। गणपति भगवान को तालाब, नदी या फिर घर के आंगन में ही कुंड बनाकर विसर्जित कर दें।
विसर्जन के समय गणपति का मुख सामने की ओर होना चाहिए। आगे मुख करके विसर्जन न करें। बप्पा के जयकार के साथ यह प्रार्थना करें कि अगले बरस जल्दी आना गणेशजी से श्रद्धा पूर्वक अपने स्थान को विदा होने की प्रार्थना करें।

गणपति विसर्जन मुहुर्त
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इस बार 19 सितंबर अनंत चतुर्दर्शी के दिन गणपति विसर्जन का शुभ पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिष के अनुसार गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त है।

गणेश विसर्जन प्रात: 07:41 से दोपहर 12:16 तक

अपराह्न मुहूर्त – दोपहर 01:45 से दोपहर 03:17 तक

सायं मुहूर्त- शाम 06:22 से रात 10:45 तक

चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – 19 सितंबर को सुबह 05 बजकर 55 मिनट से

चतुर्दशी तिथि समाप्त – 20 सितम्बर को सुबह 05 बजकर 27 मिनट तक
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