उज्जैन महाकाल के दरबार में उमड़ा आस्था का सैलाब, निकलेगी महाराजाधिराज महाकाल की सवारी।

स्वास्तिक न्यूज़ पोर्टल@उज्जैन रमाकांत उपाध्याय/

श्रावण के महीने में श्रद्धालु भगवान भोले की भक्ति में लीन है। भगवान आशुतोष के दर्शनों के लिए शिव धाम पहुँच रहे हैं। उज्जैन में भी हजारों श्रद्धालुओं का सैलाब अपने आराध्य के दर्शनों के लिए उमड़ रहा है। अधिक संख्या में आने के कारण मंदिर प्रबंधन प्रशासन ने पहले पूर्व अनुमति वाले श्रद्धालुओं को दर्शन कराएं।उसके बाद बिना अनुमति के दर्शन की व्यवस्था श्रद्धालुओं के लिए करवाई। करीब 1 किलोमीटर तक श्रद्धालुओं की लाइन लगी हुई थी।

सोमवार को भगवान महाकाल की शाही सवारी निकाली जाएगी जो नगर में भ्रमण कर प्रजा का हालचाल जानेंगे।
भगवान महाकाल को 1008 बेल पत्रों की माला बनाई गई विशेष श्रंगार कर अभिषेक किया गया।

विशेष महत्व है उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का

महाकालेश्वर मंदिर देश के प्रमुख बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। यह मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है।
ज्योतिर्लिग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी स्थापना अपने आप हुई है. इस स्थल पर जो भी श्रद्धा और विश्वास के साथ अपनी मनोकामना लेकर आता है, उसकी मनोकामनाएं निश्चित रूप से पूरी होती हैं।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिग पूरे विश्व में एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिग है जो दक्षिण की ओर मुख किए हुए है। महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणमुखी है। तांत्रिक परंपरा में दक्षिणमुखी पूजा का महत्त्व बारह ज्योतिर्लिगों में केवल महाकालेश्वर को ही प्राप्त है।

माना जाता है कि भगवान शंकर यहां दूषण नामक अत्याचारी असुर का अंत करने के लिए हुंकार सहितप्रकट हुए थे।
उन्होंने हुंकार मात्र से उस दारुण अत्याचारी दानव कोजलाकर भस्म कर दिया।
भगवान वहां हुंकार सहित प्रकट हुए, इसलिए उनका नाममहाकाल पड़ गया। इसलिए इस परम पवित्र ज्योतिर्लिंगको महाकालेश्वर के नाम से जाना जाता है।
मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है।

यह मंदिर तीन खंडों में विभाजित है. निचले खंड में महाकालेर, बीच में ओंकारेश्वर तथा सबसे ऊपर खंड में नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है. गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणोश और कार्तिकेय की मोहक प्रतिमाएं हैं. महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य आकर्षणों में भगवान महाकाल की भस्म आरती, नागचंद्रेश्वर मंदिर, भगवान महाकाल की शाही सवारी आदि है। प्रतिदिन सुबह होने वाली भगवान की भस्म आरती की खासियत यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है श्रावणमास के चारों सोमवारों के दिन नगर में महाकालेश्वर की भव्य रजत प्रतिमा की सवारी निकालीजाती है। सवारी मंदिर से निकलकर पहले क्षिप्रा तट पर जाती है। पांचवीं शाही एवं अंतिम सवारी मार्गों में निकाली जाती है।

ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर का विभिन्न अवसरों परआकर्षक श्रृंगार किया जाता है। यह श्रृंगार दर्शनीय होताहै। यह श्रृंगार श्रावण मास में तथा शिवरात्रि, नाग पंचमी,भाग पूजा व भात पूजा पर किया जाता है। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के महामंत्रो से एवं रुद्रमंत्रो से भगवान शिव का पंचामृत महाअभिषेक कियाजाता है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से स्वप्न में भीकिसी प्रकार का दुःख अथवा संकट नहीं आता है। जो कोई भी मनुष्य सच्चे मन से महाकालेश्वर लिंग की उपासना करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।